क्या ज़िंदगी भी ख़्वाब है ? क्या मैं ख़्वाब के किसी गाँव में रहता हूँ जहाँ से दूर मैं शहर की हक़ीक़त को देखता हूँ ? हाँ शायद मैं ऐसा ही करता हूँ I सुकून से भरे ख़्वाब में ना जाने फिर क्यों दुनिया और शहर मेरे ज़ेहन को परेशान करते हैं I हाँ वहाँ इश्क़ भी आता है मिलने मगर आखिर में रंग चढ़ने लगता है उस पर भी दुनिया का
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ख़्वाब दर ख़्वाब कई बार ना जाने कितने झूठ सामने आते हैं सच का लबादा ओढ़े हुए, ख़ैर यही दुनिया है अभी तो बहुत कुछ होना बाकी रहा है शायद I बस ख़्वाब दर ख़्वाब होते हुए लिख रहा हूँ यहाँ कुछ नज़्में कुछ अशआर
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क्या आओगे तुम मुझसे मिलने ? फिर किसी ख़्वाब में
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शुक्रिया अदा करना चाहूँगा कुछ बेहद खास लोगों का जिनेक बिना ख़्वाबों से भरी इस किताब को पूरा करना बिल्कुल भी मुमकिन नहीं था उनमें सबसे पहले शायरा रेनू वर्मा जिनसे इन नज़्मों पर कई बार बात हुई और उन्होंने हर बार मेरा हौंसला बढ़ाया I बहुत दूर चंडीगढ़ के नौजवान शायर दोस्त करन सहर का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होने मुझे इस किताब को जल्द से जल्द प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया और साथ ही खूबसूरत आवरण के लिए अपनी बेहद उम्दा पेंटिंग प्रदान करने के लिए बेहतरीन आर्टिस्ट केशव वरनोती जी का और बहुत सी जगहों पर मदद करने एवं तस्वीरों के लिए Studio2k18
, जोधपुर के रघुवीर सिंह काI