ये दास्तान दो दिलों की है जो नैसर्गिक रूप से एक दूसरे से जुड़े, वक़्त की लहरों के सभी उतार
चढ़ाव समेटते हुए एक दूजे के लिए समर्पित रहे ।ये उस वक्त की बात है जब सजातीय वयस्कों
को भी प्यार निषेध था और इसे सामाजिक
स्वीकृति नहीं थी, एक प्रकार का व्यसन सम समझा जाता था ।व्यक्तिगत होकर
भी इस अनमोल रिश्ते को आखिरकार सामाजिक बाना भी मिलने ही वाला था कि एक अदृश्य
वज्रपात हुआ और, बिना कुछ कहे,बिना कुछ सुने अपनी
खुशियाँ तिरोहित कर , अलग अलग रहने को दोनों दिल
मजबूर हो गए।वक़्त बीतता रहा और इस बीच बने नए रिश्तों को सींचते रहे और लगातार
निभाते रहे । तन अलग अलग जगहों पर थे और एक दूसरे के ठिकाने से भी नावाकिफ थे
लेकिन एक दिन फिर से मिलने की आस दोनों दिलों में जिंदा रही। वक़्त और हालात अपनी
रफ्तार से चलते रहे मगर दुनियादारी में मशगूल होकर भी चाहत की चिंगारी बुझी नहीं,सुलगती रही। गर्मी में रेत
के नीचे दबा बीज जैसे वर्षा आने पर खुद अंकुरित हो उठता है, वैसे ही एक दूसरे की पुकार
को परस्पर मुकम्मल होने में 16 साल लग गए। इन 16 सालों में जीवन का
स्वावभाविक बहाव और रस खोकर भी ,जिंदगी का अस्तित्व बना
रहा। जेहन की कशिश और दैवीय इच्छा से साकार हुए पुनर्मिलन के अहसास को इस खंड में
शब्दों से पिरोने की कोशिश की है। 16 साल के अंतराल के कारण
हालांकि ये अहसास बहुत विरल है,इसे लफ्जों में सटीक बयान
करना तथा आत्मसात करना भी काफी मुश्किल, लेकिन जिसने इश्क़ किया वो
जरूर इसके आवेग को महसूस कर सकते हैं।हर शब्द के पीछे एक किस्सा है, जिस किसी ने भी प्रेम मधु
को चखा है,
वो सभी हमारी कहानी में
कहीं न कहीं अपनी कहानी की झलक पाएंगे।